दंड की गति
साथ ही इस आदमी को जंजीर से बंधवा दिया। बस, कुल जमा इतना-सा तो सीध-सादा मामला है। अब यदि मैंने इस आदमी को अपने सामने बुलवाया होता और पूछताछ की होती तो पूरा मामला ही उलझ जाता। इसने मुझसे झूठ बोला होता और यदि मैं झूठों को गलत सि( करता तो इसने और झूठ गढ़ लिए होते और बस यही बार-बार दोहराया जाता रहता।
फिलहाल तो यह मेरे कब्जे में है और मैं इसे भागने दूँगा नहीं। मेरा ख्याल है अब आपको सारा मामला समझ में आ गया होगा। लेकिन क्षमा करें हम व्यर्थ में समय जाया कर रहे हैं, दण्ड प्रक्रिया की शुरुआत हमें अभी तक कर देनी थी और इधर मैंने आपको अपनी मशीन के बारे में ही पूरी जानकारी नहीं दी है।”
इतना कह उसने अन्वेषक को हल्के से धक्का दिया और उन्हें कुर्सी पर बैठा दिया और स्वयं मशीन के पास चला गया और फिर से बोलना शुरू कर दिया, “आप यह तो देख ही रहे हैं कि हेरो की लम्बाई और आकार मनुष्य की साइज का ही है। यह जगह रही धड़ के लिए और यह पैरों के लिये, बचा सिर तो उसके लिए यह एक छोटी कील ही पर्याप्त है, यह तो आपकी समझ में आ गया न?” इसके बाद वह अन्वेषक की ओर झुका उसे विस्तार से समझाने के लिए।
अन्वेषक ने हैरो को भौंह सिकोड़ते हुए देखा। न्याय की ऐसी व्यवस्था से वह पर्याप्त अप्रसन्न हो गया था। उसे अपने को याद दिलाना पड़ा कि यह मामला काले पानी के अपराधियों की बस्ती का है जहाँ विशेष कदम उठाने की आवश्यकता होती है और मिलेट्री अनुशासन का अन्तिम क्षण तक पालन किया जाता है।
इसके बावजूद उसे इस बात का भी एहसास था कि नए कमाण्डेंट से कुछ आशा की जा सकती है क्योंकि वह क्रमशः सुधार लाने का पक्षधर है, एक ऐसी व्यवस्था जिसे ऑफिसर का संकीर्ण मन-मस्तिष्क समझने में पूरी तरह असमर्थ है। विचारों की इस श्रृंखला ने उसे अगला प्रश्न करने को प्रेरित किया, “क्या कमाण्डेंट दण्ड को देखने आएँगे?”
“कुछ निश्चित नहीं है”, ऑफिसर ने उत्तर दिया, लेकिन सीधे प्रश्न से वह सकपका गया और उसके चेहरे पर दोस्ताना भाव कुछ अधिक फैल गया। “इसीलिए तो हमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, भले ही मैं इसे पसन्द न करूँ, मुझे अपने वर्णन को छोटा करना ही होगा। लेकिन कल जब यह मशीन धुल जाएगी- दरअसल इसमें सबसे बड़ी कमी यही है कि सजा पूरी होने के बाद बहुत गन्दगी फैल जाती है- तब मैं आपको विस्तार से सब कुछ समझा दूँगा।
आज तो केवल महत्त्वपूर्ण बातें हीं- जब आदमी को बैड पर लिटा देते हैं और वो चलने लगता है, तो हेरो को उसकी देह तक नीचे ले जाते हैं। वह स्वचालित होता है, सुइयाँ बमुश्किल से देह को छूती हैं, जैसे ही वे देह से सटती हैं, वैसे ही कि स्टील रिबन सख्त हो जाता है। एक कड़े बेड (तख्त) की तरह और तब शुरू होता है नाटक। एक अपरिचित दर्शक को कोई अन्तर दिखलाई नहीं देगा एक सजा और दूसरी सजा में।
हेरो अपने काम को नियमित ढंग से करता है। उसके काँपने के साथ उसकी सुइयों की नोंकें देह पर छेद करना शुरू कर देती हैं, जो खुद बेठ के काँपने से काँपती रहती हैं। खास बात यह है कि दण्ड की गति को देखा जा सकता। क्योंकि हैरो काँच से बना होता है। हालाँकि काँच में सुइयों का लगाना अच्छी खासी तकनीकी समस्या थी,
लेकिन बहुत से असफल प्रयासों के बाद हमने इस समस्या का हल अन्त में निकाल ही लिया था। आप समझ रहे हैं न कि हम किसी भी समस्या को हल करने के लिए दृढ़ संकल्पि थे। और आज कोई भी व्यक्ति काँच में से लिखी बनती जाती इबारत को देख सकता है और साथ ही पढ़ भी सकता है। क्या आप कुछ पास आने का कष्ट उठाकर इन सुइयों को देखना पसन्द करेंगे?”
अन्वेषक हौले से उठा और निहायत खरामा-खरामा चलकर हेरो के ऊपर झुक गया। “आप देख रहे हैं न?” ऑफिसर ने कहा, “कि दो प्रकार की सुइयाँ बहुत से आकारों में लगी हैं। प्रत्येक बड़ी सुई के पास छोटी सुई है। बड़ी सुई लिखने का काम करती है और छोटी सुई पानी का फव्वारा छोड़ खून धोने के काम करती जाती है ताकि इबारत स्पष्ट दिखे।
खून और पानी मिलकर छोटी नालियों से हो बड़े टनल से बाहर निकल गंदे पाइप से हो कब्र में गिरता रहता है।” ऑफिसर ने उंगली के इशारे से खून पानी के निकलने के रास्ते को विस्तार से समझाया। इस पूरी क्रिया को स्पष्ट दिखलाने के लिए उसने दोनों हाथ गंदे पाइप के नीचे लगा दिए जैसे बहाव को रोक रहा हो और जब वह यह कर रहा था,
तभी अन्वेषक ने अपना सिर पीछे खींच लिया और हाथ को पीछे कर कुर्सी को तलाशा और उस पर बैठ गया। ऑफिसर के कहने पर सजायाफ्ता व्यक्ति हेरो को निकट से देख और ऑफिसर के अनुसार काम करते देख आतंक से भर गया। सजायाफ्ता ने आलसी नींद से भरे सैनिक को आगे बढ़ाने के लिए चैन खींच ली और काँच के ऊपर झुक देखने लगा।
यह तो कोई भी देख सकता था कि उसकी अस्थिर आँखें दोनों व्यक्ति क्या देख रहे हैं उसे देखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन चूँकि उसके पल्ले कुछ पड़ नहीं रहा था। इसलिए वह अकबकाया सा देखकर समझने की कोशिश कर रहा था सिर झुकाए इधर-उधर बस देखे भर जा रहा था। वह काँच पर आँखें घुमा रहा था।
अन्वेषक तो उसे वहाँ से भगा देना चाहता था क्योंकि वह जैसा व्यवहार कर रहा था, वह अवांछित था लेकिन ऑफिसर ने अन्वेषक का हाथ पकड़ उसे रोक दिया और दूसरे हाथ से जमीन से पत्थर उठा सैनिक की ओर फेंका।
चोट लगने से उसने अचानक आँखें खोलीं और सजायाफ्ता की हरकत को देख उसने हाथ की राइफल गिरने दी और अपनी एडि़याँ ज़मीन पर गड़ा सजायाफ्ता को जोर से खींचा। परिणामस्वरूप वह लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर गया और फिर नीचे झुकी आँखों से देखते हुए खड़ा हो गया, जबकि सैनिक उसे गिरते सम्भलते, खड़े होते, जंजीरों की खनखनाहट के बीच देखे जा रहा था।
“उसे अपने पैरों पर खड़ा करो”, ऑफिसर चिल्लाया क्योंकि उसने गौर किया कि अन्वेषक का ध्यान सजायाफ्ता की ओर था। सच भी यही था कि अन्वेषक हेरो के ऊपर झुका तो था लेकिन सजयाफ्ता को वह एकटक देखे जा रहा था।
“उससे सावधान रहना”, ऑफिसर फिर चीखा और मशीन का चक्कर लगा दौड़कर पहुँचा और सजायाफ्ता को कंधे से पकड़ सैनिक की सहायता से पैरों पर उसे किसी तरह खड़ा किया जो बार-बार फिसल रहा था।